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कविता

जब से घुसा गाँव में वोट

ओमप्रकाश तिवारी


दफन
हो गया भाईचारा
जब से घुसा गाँव में वोट।

सुख-दुख में थे
साथ पड़ोसी
रहा साथ ही जीना-मरना,
बेटे का
मुंडन-छेदन हो
या बेटी की शादी करना;

रहे सदा जो
साथ हमारे
नजर चुरा हो जाते ओट।

चौपालों का
रंग अजब था
गजब लगे चालीसा गान,
हरिया की
ढोलक पर गूँजे
आल्हा औ बिरहा की तान;

सब कुछ
अपने साथ ले गए
बाँट-बाँट कर नेता नोट।

पाँच बरस में
एक इलेक्शन
बंद रोज की दुआ-सलाम,
कई मुकदमे
शुरू हो गए
जीवन भर की नींद हराम;

लोकतंत्र यूँ
घर में घुसकर
पहुँचा गया करारी चोट।
 


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