दफन
हो गया भाईचारा
जब से घुसा गाँव में वोट।
सुख-दुख में थे
साथ पड़ोसी
रहा साथ ही जीना-मरना,
बेटे का
मुंडन-छेदन हो
या बेटी की शादी करना;
रहे सदा जो
साथ हमारे
नजर चुरा हो जाते ओट।
चौपालों का
रंग अजब था
गजब लगे चालीसा गान,
हरिया की
ढोलक पर गूँजे
आल्हा औ बिरहा की तान;
सब कुछ
अपने साथ ले गए
बाँट-बाँट कर नेता नोट।
पाँच बरस में
एक इलेक्शन
बंद रोज की दुआ-सलाम,
कई मुकदमे
शुरू हो गए
जीवन भर की नींद हराम;
लोकतंत्र यूँ
घर में घुसकर
पहुँचा गया करारी चोट।